Saturday, November 7, 2015


श्री-वरदा हो दीपावली

इस वर्ष 11 नवम्बर 2015, बुधवार को स्वाती/विशाखा नक्षत्र, सौभाग्य योग, अमावस्यायुक्त प्रदोष तथा निशीथ योगों से युक्त दीपावली अत्यन्त शुभप्रद है। कुम्हार के चाक पर बने मिट्टी के दीए ही पूजा के अत्यन्त उपयुक्त होते हैं। साथ ही दीपक में जलते तेल की गन्ध मानवमात्र के लिए अहानिकारक किन्तु कीट-विषाणु-रोधक होने से तैलपूर्ण दीए का ही प्रयोग सर्वथा उचित है। मोमबत्ती का जलता मोम मानव के फेफड़ों के साथ ही पर्यावरण के लिए भी अत्यन्त नुकसानदायक है। इसलिए मोम के प्रयोग से हरसम्भव बचना चाहिए।

लोकत्योहार है दीपावली, इसलिए सामुहिकता दिखती है,

लक्ष्मी पर्व है, इसलिए मिट्टी के दीपक, मिट्टी की प्रतिमा, मिट्टी के कलश ही उपयोग में लाए जाते हैं,

स्थावरोत्सव है, क्योंकि जिस भूभाग में हैं, उसी भूभाग की मिट्टी से बने सामान प्रयोग में लाए जाते हैं।

सद्गृहस्थों के लिए महावसना पूजन के शुभ मुहूर्त:
पश्चिमी भारत (दिल्ली, मेरठ, जयपुर, लुधियाना, अमृतसर)

1) प्रदोषकाल में शाम 5.43 से 7.38 तक (स्थिर वृष लग्न, विशाखानक्षत्र), सायम् 7.09 से 08.50 तक शुभ चौघड़िया है।

2) निशीथकाल में रात्रि 9.52 से 10.31 तक कर्क लग्न तथा अमृत चौघड़िया महावसना के पूजन के लिए अत्यन्त शुभ है।

पूर्वी भारत (इलाहाबाद, वाराणसी, पटना, राँची, गोरखपुर, टाटानगर)

1) प्रदोषकाल में शाम 5.07 से 7.26 तक (स्थिर वृष लग्न, विशाखानक्षत्र), सायम् 7.09 से 08.50 तक शुभ चौघड़िया है।

2) निशीथकाल में रात्रि 9.40 से 10.19 तक कर्क लग्न तथा अमृत चौघड़िया महावसना के पूजन के लिए अत्यन्त शुभ है।

इस समय श्रीसूक्त, लक्ष्मीसूक्त, कनकधारास्तोत्र आदि का अनुष्ठान अत्यन्त मंगलकारी होगा।

इस वर्ष सिंह लग्न प्रवेश के समय रात्रि में अमावस्या नहीं है। इसलिए महानिशीथकाल में लक्ष्मीपूजन के मुहूर्त नहीं है।

दीपावली पूजन में वास्तु का रखें ध्यान...

रंगोली-

घर के प्रवेशद्वार पर रंगोली, दोनों ओर स्वास्तिक तथा घर के अंदर आते पाँवों के लाल निशान बनाएँ।

घी मिश्रित सिन्दूर से स्वस्तिक दीवार पर बनाने से वास्तुदोष का प्रभाव कम होता है।
पूजास्थल को सफेद या हल्के पीले रंग से रंगें। ये रंग शांति, पवित्रता और आध्यात्मिक प्रगति के प्रतीक हैं।
देवमूर्तियाँ-

पूजन ईशान कोण में करें, भगवान गणेश की मूर्ति को हमेशा माँ लक्ष्मी की मूर्ति की बायीं ओर रखें, माँ सरस्वती को दाहिनी तरफ रखें।
मूर्तियों को ईशान कोण में रखें, पानी की छवि एवं कलश को पूजा स्थल की पूर्व या उत्तर दिशा में रखें।

देवी-देवताओं की मूर्तियां तथा चित्र पूर्व-उत्तर दीवार पर इस प्रकार रखें कि उनका मुख पश्चिम दिशा की तरफ रहे अथवा मुख्य द्वार की तरफ होना चाहिए।

घर या कार्यस्थल के किसी भी भाग में वक्रतुंड की प्रतिमा अथवा चित्र लगाए जा सकते हैं, किंतु प्रतिमा लगाते समय यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि किसी भी स्थिति में इनका मुंह दक्षिण दिशा या नैऋत्य कोण में नहीं हो। इसका विपरीत प्रभाव होता है।
घर में बैठे हुए गणेशजी तथा कार्यस्थल पर खड़े गणेशजी का चित्र लगाना चाहिए। किंतु यह ध्यान रखें कि खड़े गणेशजी के दोनों पैर जमीन का स्पर्श करते हुए हों, इससे कार्य में स्थिरता आने की संभावना रहती है।
कमलासना देवी की उपासना के लिए लाल आसन के नीचे कुम्हार, विमौट अथवा खेत की मिट्टी रखें

दीपमालिका-
कुम्हार के चाक पर बने चौदह दीये चौदह रत्नों के लिए, पाँच दीये गंगादि पवित्र नदियों के लिए, इष्टदेवता, कुल देवता, ब्रह्मा, विष्णु, महेशादि देवों के लिए ग्यारह दीये तथा एक दीया तुलसीजी के लिए (कुल 31 दीये) घी के रखें... पाँच लोकपाल, दस दिक्पाल, 33 वसु आदि देवों के लिए, तथा तीन ग्राम, स्थान और वास्तु देवों के लिए (कुल 51 दीये) तिल के तेल के लिए रखें.....इसे ही दीपमालिका कहते हैं...
घर के बाहर चारों दिशाओं में चार-चार दीए एक साथ...लक्ष्मी, गणेश, कुबेर और इन्द्र के लिए
घर में, सीढ़ियों पर, चारदीवारी पर, बरामदे, टैरेस और आस-पास तिल अथवा सरसों के तेल के दीए ही जलाएँ.... इनके प्रकाश से मिलकर कॉस्मिक-चुम्बकीय उर्जा हमारे अनुकूल तथा इनकी सुगन्ध से वातावरण वायरस के प्रतिकूल हो जाता है
सबसे अधिक दीए दक्षिण-पश्चिम में, उत्तर-पश्चिम में सबसे कम दीए रखें

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