Tuesday, August 18, 2015

नागपंचमी... 19.08.2015


सर्वार्थसिद्धि योग और रवियोग युक्त श्रावणमास के अन्यतम पर्वों में से एक... बुधवार का दिन,

1)नागपंचमी सावन शुक्ल पंचमी में ही क्यों......

सब जानते हैं कि वर्षाऋतु में नागजाति बिल में पानी भर जाने से बाहर निकलते हैं। अंधकारप्रिय होने के कारण और बिलों से बाहर निकल जाने के कारण श्रावण शुक्ल पंचमी प्रत्यक्ष नागपूजन का उपयुक्त अवसर है क्योंकि इस दिन प्रकाश कुछ ही देर तक रहता है, अंधकार की बहुलता होती है।

पंचमी तिथि के स्वामी नाग होते हैं। अग्निपुराण के अनुसार, शेष आदि दिव्य सर्पों का पूजन पंचमी को करें।

2) नागपूजन की पौराणिक मान्यताएँ.....

वैसे तो साँप एक सामान्य जीव है, लेकिन देवता के रूप में बारह दिव्यसर्पों का उल्लेख वेदों में मिलता है। अहिबुद्घ नामक नाग की पूजा का प्रमाण ऋग्वेद में मिलता है। इस पर्व से संबंधित कई लोक-कथाएँ एवं मान्यताएँ जुड़ी हुयी हैं।

कहा जाता है कि एक बार नागराज तक्षक ने सम्राट परीक्षित को डँस लिया। इससे उसका पुत्र जनमेजय बहुत ही क्रोधित हुआ। तक्षक से अपने पिता का प्रतिशोध लेने का निश्टय कर उसने नागविनाश के लिए नागमेध यज्ञ प्रारम्भ कर दिया। तब देवर्षि नारद सम्राट जनमेजय के पास पहुँचे और उसे भलीभांति समझाया। प्रायश्चित स्वरूप उसने नागों की पूजा की। मान्यता है कि उसी दिन से प्रतिवर्ष श्रावणशुक्ल की पंचमी तिथि को नागपंचमी मनायी जाने लगी। श्रीमहाभारत के आदिपर्व में आस्तीकखण्ड के 58वें अध्याय में उल्लिखित है कि इस यज्ञ में आस्तीक मुनि ने सर्पों से वचन लिया था। इसलिए आस्तीक मुनि के वचनों के पाठ और जप से सर्पदोषों से तत्क्षण मुक्ति मिल जाती है।

 

यो जरत्कारुणा जातो जरत्कारौ महावशाः।

आस्तीकः सर्पसत्रे वः पन्नगान्योभ्यरक्षत।

तं स्मरन्तं महाभागा न मां हिंसितुमर्हथ।

सर्पापसर्प भद्रं ते गच्छ सर्प महाविष।

जनमेजयस्य यज्ञान्ते आस्तीकवचनं स्मर।।

आस्तीकस्य वच श्रुत्वा यः सर्पः न निवर्तते।

शतधा भिद्यते मुर्धा शिंशवृक्ष फलं यथा।।

 

पुराणों के अनुसार, यमुना नदी में एक भयंकर जहरीला विशाल कालिय नाग रहता था। उसके विष से नदी का जल ही नहीं, आसपास के पेड़-पौधे, वनस्पतियां, मिट्टी तक विषैली हो गयी थी। ब्रजवासी उसके आतंक से पीड़ित थे। लोगों की प्रार्थना पर भगवान श्रीकृष्ण ने कालिय नाग को कालियदह से दूर समुद्र में जाने का आदेश दिया। कालिय नाग से मुक्ति के उपलक्ष्य में नागपंचमी का पर्व मनाया जाने लगा।

3) लोक-कथाओं में भी नागपंचमी का महत्व अनेकों तरह से गाया गया है। एक लोककथा के अनुसार किसी गाँव में एक किसान अपने सात बेटों और सात बहुओं के साथ रहता थानमें छोटी बहू का कोई मायका नहीं था, इससे वह तीज-त्योहारों पर काफी दुःखी हो जाती थी। उस पर तरस खाकर सावन के महीने में एक दिन शेषनाग उस किसान के घर आये और खुद को उसका दूर का रिश्तेदार बताया और बहु को अपने घर विदा कराकर ले जाने की प्रार्थना की। किसान ने छोटी बहू को शेषनाग के साथ भेज दिया। छोटी बहू शेषनाग के घर में आनंद से रहने लगी। एक दिन भूल से एक जलता हुआ दीपक शेषनाग के दो बच्चों पर गिर पड़ा, जिससे बच्चों की पूँछ कट गयी। शेषनाग कुछ न बोले और समय पर छोटी बहू को उसकी ससुराल पहुँचा दिया। जब शेषनाग के बच्चे बड़े हुए और उनकी पूंछ कटने की बात उनको मालूम हुई तो वे दोनों छोटी बहू को डँसने के लिए किसान के घर में चुपके से आ पहूँचे। उन्होंने देखा कि छोटी बहू अपने नाग भाइयों के कल्याण की कामना कर रही थी। इससे वे दोनों नाग के बच्चे अति प्रसन्न होकर अपनी बहन को उपहारस्वरूप बहुमूल्य मणिमाला देकर विदा हुए। उस दिन श्रावण मा के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि थी। लोकमान्यता है कि सी दिन से नाग-पंचमी मनाने की परंपरा चल पड़ी।

4) कैसे करें नागपूजन....

वैदिक काल से ही दिव्य सर्पों का पूजन होता आ रहा है। नमोस्तु सर्पेभ्यःआदि वैदिक मंत्र तथा नारायण बलि आदि वैदिक कर्मकाण्ड सर्पों की महिमा का ही बखान करते रहे हैं। भगवान शंकर कहते हैं कि यह पंचमी देवताओं को भी दुर्लभ है। दिव्य सर्पों की पूजा का पर्व नागपंचमीश्रावण मास के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को सारे देश में श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है। इस दिन दिनभर का व्रत और पूजन के बाद सायंकाल एक ही बार के भोजन करने का विधान है। क्षमतानुसार सोना, चाँदी, लकड़ी या मिट्टी अथवा गोबर से नाग की मूर्ति बनाकर उसे प्रातःकाल पंचामृत, करवीर, कमल, सुगन्ध, धूप, दूध, लावा, खीर तथा विभिन्न पूजन सामग्रियों से नाग देवता का पूजन करें तथा प्रणाम कर अभयदान की प्रार्थना करें।

द्वादश नाग...

अनन्त, वासुकी, शेष, पद्म, कंबल, कर्कोटक, अश्वतर, धृतराष्ट्र, शंखपाल, कालिय, तक्षक, और पिंगल.. ये बारह नाग एक-एक महीने के स्वामी हैं।

इनकी पूजा इनके नामों से आज करने से सर्प, विष, शत्रु कालसर्प दोष आदि से तत्काल मुक्ति मिल जाती है।

इसके अलावा ब्राह्मणों को भोजनादि कराकर दान-दक्षिणा दी जाती है। इस दिन नागों को दूध से विशेष रूप से स्नान कराया जाता है। विश्वास है कि नाग-पूजा से धन की रक्षा, अच्छी सेहत, स्वस्थ संतान, दीर्घ जीवन आदि का आशीर्वाद मिलता है।

5) कालसर्प जनित अनिष्ट की शांति का उत्तम दिन...
इस तिथि को चंद्रमा की राशि कन्या होती है और राहु का स्वगृह कन्या राशि है। राहु के लिए प्रशस्त तिथि, नक्षत्र एव स्वगृही राशि होने के कारण नागपंचमी कालसर्प दोष की शांति के लिए उत्तम दिन माना जाता है। कालसर्प दोष की शान्ति के लिए नागपूजा एवं नारायण बलि करें। पंचमी तिथि को भगवान शंकर भी सुस्थानगत होते हैं। इसलिए इस दिन सर्पशांति के अंतर्गत राहु-केतु का जप, दान, हवन आदि उपयुक्त होता है। इसके अतिरिक्त अन्य दुर्योगों के लिए भगवान शिव का अभिषेक, महामृत्युंजय मंत्र का जप, यज्ञ, शिवसहस्रनाम का पाठ, गाय और बकरे के दान का भी विधान है।

नागगायत्री और द्वादशनाग का जप कर दशांश हवन से कालसर्प की शान्ति हो जाती है।

नाग गायत्री मंत्र..

ऊँ नवकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीहि तन्नो सर्पः प्रचोदयात्

 

 

Saturday, August 1, 2015

सावन-2015 में कैसे करें शिवपूजन


 
एक अगस्त, शनिवार से श्रावण मास प्रारंभ होगा. श्रवण से शुरू और श्रवण में पूर्णिमा का आगमन....वामनरूप विष्णु श्रवण के देवता हैं तथा सोम यानि चन्द्रमा स्वामी.... कष्टमुक्ति, स्थिर आरोग्य और परम ऐश्वर्यदायी होगी इस सावन में भोलेभंडारी की आराधना।

उर्ध्वमुख और चर संज्ञक श्रवण नक्षत्र में आयुष्मान योग, सर्वार्थ सिद्धियोग, यायिजय योग और द्विपुष्कर योग है। इस योग में भगवान आशुतोष की आराधना परम ऐश्वर्य का वरदान देती है। जिनकी कुंडली में कालसर्प योग, गुरु चंडाल योग, पितृ दोष अथवा केमद्रुम योग है,...मारकेश की दशा भुक्ति है, अथवा शनितुल्य क्रूर ग्रहों के गोचर से आय पर संकट आ खड़ा हुआ है, उन्हें इस सावन के प्रथम दिन लघुरुद्राभिषेक करना चाहिये।

इस सावन 5 शनिवार हैं....... शनिवार के व्रत करने, शनिवार को शमीपत्र, धत्तूर तथा कालेतिल युक्त दूध से भगवान आशुतोष की पूजा करने तथा पंचामृत से अभिषेक करने से अवग्रहों की कुटिल दृष्टि से मुक्ति मिलेगी, स्थिर आरोग्य और ऐश्वर्य प्राप्त होगा।

इस सावन के चारों सोमवार चतुर्विध पुरुषार्थ देने वाले हैं.... इस सावन के पहले सोमवार (3 अगस्त) को शतभिषा नक्षत्र व गणेश चतुर्थी है...संतानसुख में आयी बाधा इस सोमव्रत से अवश्य दूर होगी।

दूसरे सोमवार (10 अगस्त) को कामिनी एकादशी के दिन शिवार्चना धन-सम्पदा-ऐश्वर्य की कामना पूर्ण करने वाली है।

तीसरे सोमवार 17 अगस्त को पू. फा. नक्षत्र में गौरी पूजन व हरियाली तीज का व्रत होगा। यह व्रत दाम्पत्यसुख के लिए अत्यन्त शुभ है।

 24 अगस्त को अंतिम सोमवार को नवमी तिथि व ज्येष्ठा नक्षत्र का संयोग है... साम्बसदाशिव की आराधना मोक्षदायक होगी.....

सावन में कैसे करें शिवपूजा

सावन में पार्थिव पूजन... सावन में मनसा पूजन, पार्थिव पूजन अथवा ज्योतिर्लिंगों के पूजन का बहुत महत्व है। पार्थिवपूजन से आशुतोष शीघ्र प्रसन्न होते हैं।

 

पूजन सामग्री-

मिट्टी शमी या पीपल के जड़ की, विमौट(दीमक की मिट्टी), गंगादि पवित्र स्थानों की मिट्टी, किसी पवित्र स्थान पर जमीन के चार अंगुल नीचे की मिट्टी

- फूल, अक्षत, रोली, सिंदूर, भस्म, पान, सुपारी, लौंग, ईलायची, पंचमेवा, रूद्राक्ष की माला, बत्ती, मिट्टी के दीपक, जनेऊ, अगरबत्ती, बेलपत्र, मिट्टी का कटोरा, माचिस, कपूर, धतुर फल, दूब, कुश, गंगाजल, घी, दूध, दही, शहद, शक्कर, ऋतुफल, कांसे की प्लेट, पूजा की थाली, पूजा के लिये स्वच्छ जल, कांसे का परात, कांसे का कटोरा, पेंदी में बारीक छेद किया हुआ तांबे का लोटा या शृंगी।

पूजन-विधि

- कुशा की पवित्री धारण कर आचमन करें तथा रक्षा दीप जला लें।

- ऊँ ह्राँ पृथिव्यै नमः का जप करते हुए कांसे की प्लेट में आवश्यकतानुसार मिट्टी लेकर पानी का थोड़ा छींटा डालें।

- हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर गणपति के साथ माता गौरी का स्मरण करें और सादर पुष्प-अक्षत परात में डाल दें। परात के बीच में कांसे का औंधा कटोरा रख दें।

- दाहिने हाथ में अर्घ्य पात्र [मिट्टी का कटोरा] लेकर उसमें तीन कुश, सुपारी, पुष्प, अक्षत, जल और द्रव्य रखकर इच्छा का संकल्प करें और वहीं सामने रख दें।

- ऊँ नमः शिवाय-- इस मंत्र का लगातार जप करते हुए मिट्टी से शिवलिंग गढ़ें। शिवलिंग अंगूठे से बड़ा न हो।

- कांसे के औंधे कटोरे पर बेलपत्र रखकर उसपर शिवलिंग रखें। शिवलिंग पर मिट्टी की छोटी गोली रखें। उस लिंग के चारों ओर दस लिंग रखें।

- ग्यारह लिंगों को पान के पत्ते अथवा बेलपत्र से ढक दें जिससे पानी आदि से लिंग की मिट्टी न बहे।

- फिर मंत्र ऊं नमो भगवते सांबसदाशिव पार्थिवेश्वराय नमः का जप करते हुए माता पार्वती के साथ भगवान् शंकर के आवाह्न, प्राणप्रतिष्ठा और आसन के लिये शिवलिंग पर फूल-अक्षत अर्पित करें। फिर अर्घ्य,पाद्य, आचमन और स्नान के लिये जल अर्पित करें। फिर पंचामृतस्नान, शुद्ध स्नान और आचमन निवेदित करें।

अभिषेक-विधि.....

छिद्रदार लोटे या शृंगी में केसर मिश्रित दूध अथवा अपनी कामना के अनुसार द्रव्य भरकर से भगवान् का अभिषेक करें।

अभिषेक मंत्र ....

ऊँ नमः शम्भवाय च मयोभवाय च

नमः शंकराय च मयस्कराय च

नमः शिवाय च शिवतराय च

इस मंत्र से भगवान का अभिषेक करें (108 बार मंत्र)

- फिर ऊँ नमो भगवते सांबसदाशिव पार्थिवेश्वराय नमः का जप करते हुए शुद्ध स्नान, आचमन, वस्त्र, जनेऊ, आचमन, चंदन, भस्म, अक्षत और पुष्प अर्पित करें।

फिर बेलपत्र पर चन्दन से राम-राम लिखकर भगवान् को अर्पित करें।

फिर ऊँ नमो भगवते सांबसदाशिव पार्थिवेश्वराय नमः का जप करते हुए दूब, धूप, दीप, नैवेद्य [पञ्चमेवा],आचमन, ऋतुफल, धतूर फल और लौंग-सुपारी युक्त पान अर्पित करें।

 

- आरती करें, क्षमा प्रार्थना और कार्य सिद्धि की प्रार्थना करते हुए पुष्पांजली दें।

- आधी प्रदक्षिणा करें और फिर आने का आग्रह करते हुए विसर्जित करें।

- विसर्जन के लिये ऊँ शान्तिः ऊँ शान्तिः ऊँ शान्तिः कहते हुये परात हिला दें और सावधानी से पूजन-सामग्री सहित शिवलिंग उठाकर किसी नदी, तालाब अथवा पीपल के पेड़ के नीचे रख दें।

 
जो श्रद्धालू मंदिर जाकर पूजा करेंगे वे आधी प्रदक्षिणा कर अर्घे से गिरती जलधारा से जल लेकर पान करेंगे..घर आकर सभी जगह छींट देंगे।

 

भगवान शिव के पूजन क्रम में रुद्राभिषेक अतीव फलदायी माना गया है। विशेष कामनाओं के लिए विशेष द्रव्य से अभिषेक का विधान कहा गया है

व्याधि शान्ति के लिए कुशोदक से

श्रीसम्पन्नता हेतु गन्ने के रस से

धन के लिए शहद

मोक्ष के लिए तीर्थ-जल से

संतान प्राप्ति हेतु गोदुग्ध से

शत्रुमुक्ति के लिए सरसों के तेल से

विवाह के लिए केसर -हल्दी मिश्रित दुध से अभिषेक करना चाहिए।