Tuesday, December 31, 2013

वर्ष 2014:कैसी है ग्रह-चाल


वर्ष 2014 का प्रारम्भ धनु लग्न में हो रहा है। लग्नस्थ चन्द्रमा और बुध के साथ सूर्य आशा की नई किरण बनकर आ रहे हैं। शनि-राहु की एकादश में युति आय के संसाधनों में वृद्धि के साथ कुछ के लिए दुविधाजनक स्थितियों का निर्माण करती दिख रही है। उच्चस्थ शनि के साथ मध्य वर्ष में गुरू का उच्च की राशि कर्क में संक्रमण होने से वर्ष अत्यन्त शुभ होता दिख रहा है, किन्तु शनि-राहु की य़ुति वर्ष के पूर्वार्ध में थोड़ी परेशानी का कारण बनते दिख रहे हैं.....
मेष राशि--- मेष राशि के लिए साल 2014 नई ऊर्जा लेकर आयेगा। 15 जनवरी को पंचमेश सूर्य दशमस्थ होगा, जिस कारण फैसलों और विचारों में बुद्धिमता झलकेगी।
मार्च-अप्रैल के दौरान बुध मीन राशि में आ जायेगा। मंगल कन्या में और शुक्र मकर राशि में भ्रमण करेगा। इस दौरान आप पर  दूसरों का प्रभाव रहेगा तथा सामाजिक सम्बन्धों में गतिशीलता आयेगी। आप नये विचार तथा नई योजनाएँ बनाते दिखेंगे। धन की जबर्दस्त आय होने की संभावना बनी हुई है। जून जुलाई यानी साल के मध्य में गुरू कर्क राशि में भ्रमण करना प्रारम्भ करेगा उसके प्रभाव से आपके प्रेम सम्बन्ध प्रगाढ़ होंगे।
साल के अंत में बुध के कन्या में आने और शुक्र के तुला में गोचर से आर्थिक पक्ष मजबूत होगा। साल के अंत में घर में कई शुभ काम होंगे। परन्तु अनावश्यक खर्च पर नियन्त्रण न रखने से मन में खिन्नता बनेगी। रूके हुये धन की प्राप्ति होगी तथा आय के नये स्रोत उपलब्ध हो सकते हैं। भगवती दुर्गा की आराधना करें।
वृष राशि--- वर्ष 2014 वृष राशि वालों के कैरियर का वर्ष सबित होगा। जनवरी के प्रारम्भ से ही मंगल कन्या राशि में तथा बुध रमण करेगा। इस कारण साल की शुरुआत ही धमाकेदार होने वाली है। फरवरी माह में लग्नेश शुक्र के अष्टमस्थ हो जाने से लघु अवधि के लिए अड़चनें आपकी गति धीमी कर सकती हैं। किन्तु बड़े कार्यों में स्थायी रूप से उन्नति होती रहेगी।
साल के मध्य यानी जुलाई-अगस्त में कर्क में गुरू बुध के साथ स्थित होगा जिससे नर्इ योजानाओं पर विचार-विमर्श होने के आसार है। सरकारी कार्यों में प्रगति होगी एवम् घर-गृहस्थी में सुखद वातावरण बने रहने के आसार नजर आ रहे है। इस दौरान नई नौकरी के योग बनते दिख रहे हैं। सप्तमेश मंगल के जुलार्इ में छठें भाव में आ जाने के कारण जीवनसाथी का स्वास्थ्य प्रभावित होगा।
साल के अंतिम महीनों में एक बार फिर भाग्य करवट लेगा। सप्तम का सूर्य कुछ लोगों के लिए परिवर्तनकारी भी साबित हो सकता है। सरकारी नौकरीवालों का स्थानान्तरण होने के संकेत है। सोची-समझी रणनीति के तहत कार्य आपको नर्इ दिशा देने में कामयाब  होगी। महालक्ष्मी की उपासना दुर्योगों का नाश करेगी।
मिथुन--2014 आपके लिए धन और समृद्ध‍ि लेकर आयेगा। साल की शुरुआत में राशीश बुध के मकर राशि में आने से पब्लिक सेक्टर में काम करने वालों की आय में बढ़ोत्तरी होगी। मध्य 2014 से सेवाक्षेत्र.. मेडिकल, वकालत, शिक्षा आदि से जुड़े लोगों को आर्थिक लाभ मिलेंगे। आपके द्वारा किये गये कार्यों की लोग प्रशंसा करेंगे।
साल के मध्य में सूर्य वृष का होकर द्वादश भाव में गोचर करेगा अतः मर्इ का महीना व्ययकारी होगा। किन्तु गुरू के द्वितीय भाव में संचरण से यह वर्ष आपकी मनोकामनाओं को पूर्ण करने में सहायक सिद्ध होगा। आपको गलत संगति से बचना चाहिए अन्यथा हानि हो सकती है। ननिहाल का सुख व सहयोग प्राप्त होगा। रचनात्मक कार्यों में रूचि बढ़ेगी। कम संसाधनों के बावजूद आप बेहतर परिणाम देने में कामयाब होंगे। भगवन श्रीहरि की आरधना करें।
कर्क---वर्ष की शुरुआत तनावपूर्ण दिखती है। ढैया, मकरस्थ सूर्य, मंगल कन्या में एंव बुध मकरस्थ होने से वर्ष 2014 की शुरुआत अच्छी नहीं रहेगी। तनाव बना रहेगा। नौकरी और घर दोनों का तनाव गहराता दिख रहा है।
साल के मध्य में सूर्य मिथुन राशि में प्रवेश करेगा। बुध भी मिथुन राशि में गोचर करेगा। शुक्र वृष राशि में आ जायेगा। मंगल कन्या में एवम् गुरू कर्क राशि में भ्रमण करना प्रारम्भ करेंगे। शनि तुला में ही गोचर करता रहेगा। इस दौरान करीब दो-तीन महीने के लिये आपका समय बहुत अच्छा रहेगा। अर्ध सरकारी संस्थाओं से मैत्री पूर्ण सम्बन्ध स्थापित होंगे। धन के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ेगा। भविष्य की चिन्ता रहेगी। इसके अलावा कई बनते हुए काम बिगड़ने की भी आशंका है।
साल के अंत में सूर्य धनु राशि में संक्रमण करेगा तथा बुध भी सूर्य के साथ आ जायेगा। यानी नवंबर-दिसंबर में सूर्य धनु राशि का होकर आपके छठे भाव में गोचर करेगा जो आपके लिए हितकारी साबित होगा। भाग्य पूरी तरह आपका साथ देगा। वर्षान्त घर में ढेरों खुशियाँ लाएगा। माता पार्वती की पूजा से संक्रमणकाल में मन स्थिर रहेगा।
सिंह-- सिंह राशि वालों के लिए यह वर्ष लक्ष्‍य पर फोकस करने वाला होगा। वर्ष के प्रारम्भ में सूर्य का मकर, कुम्भ तथा मीन में प्रवेश सफलताएं देगा तथा आप अपनी महत्‍वकांक्षाओं को पूरा करने की दिशा में अग्रसर होंगे।
मध्य वर्ष में गुरू कर्कस्थ होंगे, मंगल कन्या में और केतु नवम् भाव में रहने से साझेदारों, दोस्‍तों और रिश्‍तेदारों से मिली आर्थिक सहायता आपको कई काम करने में मददगार साबित होगी। बच्‍चों और शादी संबंधी मामले सुलझते नजर आएंगे। अविवाहित जातकों के विवाह की समस्या जुलाई के बाद सुलझती दिख रही है।
प्रेम सम्बन्ध जटिल होते दिख रहे हैं। अविश्वास तथा एक-दूसरे के प्रति समर्पण की कमी प्रणय सम्बन्ध के लिए ठीक नहीं है। इस वर्ष के मध्य से आपको स्‍वास्‍थ्‍य सम्बन्धी परेशानियाँ जैसे, उच्‍च-रक्‍तचाप और उदर सम्बन्धी रोग तंग कर सकती हैं। वर्ष के प्रारम्भ से ही परिजनों के साथ सम्बन्ध तनावपूर्ण हो सकते हैं।
विद्यार्थियों के लिए वर्ष 2014 काफ़ी अच्‍छा रहना वाला है। नियमित सूर्य को अर्घ्य दें... अवग्रह कटते जाएँगे।
कन्याकन्या राशि वालों के लिए यह वर्ष ख्याति और उन्नतिकारक है। राशीश बुध सूर्य के साथ मकर तथा मीन के शुक्र सप्तमस्थ होने से वर्ष की शुरुआत बेहतर होगी। आप पर नए काम का दबाव बनेगा। आर्थ‍िक तौर पर कुछ आवंछनीय ख़र्चे आपको परेशान कर सकते हैं। निजी जीवन के लिए समय चुनौतीपूर्ण दिख रहा है।
नई निवेश योजनाएँ बनाने के लिए वर्ष का उत्तरार्ध उत्तम है। गुरू के एकादश दो जाने से वर्ष 2014 में आपके प्रोफ़ेशनल कैरियर तथा आय में प्रगति के अवसर बन रहे हैं। काम से सम्बन्धित यात्राएँ भी सम्भव है।
शेयर बाजार में आपको कुछ नुकसान होने की संभावना है। आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता दिख रहा है। श्रीगणेश की आराधना वर्ष की दिक्कतों को कम कर देगी।
तुला-- काफी उथल-पुथल भरा वर्ष सिद्ध होगा तुला राशि के लिए 2014। जून तक आपको अपने कैरियर से सम्बन्धित कुछ परेशानियाँ घेर सकती हैं। वर्ष का पूर्वार्ध शनि-राहु की युति तथा द्वादशस्थ मंगल कुछ बाधाएँ खड़ी कर सकते हैं। सूर्य-केतु-बुध की संयुक्त स्थिति सप्तम में होने से वर्ष की दूसरी तिमाही में वैवाहिक जीवन तनावपूर्ण होने के आसार बन रहे हैं। आपके लिए अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रख पाना आसान नहीं होगा। एक संयमित जीवनशैली के अभाव में इस वर्ष आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता काफ़ी कमज़ोर रह सकती है। आपको अपने खान-पान को लेकर थोड़ा सतर्क रहने की ज़रूरत है।
वर्ष की तीसरी तिमाही राहु के द्वादशस्थ होने से आप कानूनी मामलों में उलझ सकते हैं। अपने विचारों को लेकर स्‍पष्‍ट रवैया अपनाएँ नहीं तो आप दुविधा में रह सकते हैं। सकारात्‍मक और महत्‍वकांक्षी सोच आपको अपना लक्ष्‍य हासिल करने में सहायता प्रदान करेगी। शुक्र का व्रत आपके लिए काफ़ी मददगार साबित होंगा।
वृश्चिक--- वृश्चिक राशि वालों के लिए वर्ष 2014 बेहतरी का वर्ष साबित होगा। पूर्वार्ध में नए अवसर आपका इंतज़ार कर रहे हैं। जून के बाद का वक्‍़त भाग्य का साथ मिलना प्रारम्भ होगा। किन्तु आर्थिक क्षेत्र में थोड़ी अस्थिरता नज़र आ रही है। बढ़ा व्यय लगातार आपको तनाव में रखेंगे। प्रेम संबंधों के लिहाज से यह वर्ष आपके लिए काफी अच्‍छा रहने वाला है। हालांकि वर्ष के दूसरे छमाही में कुछ समय तक अलगाव हो सकता है। तीसरे सूर्य और छटे केतु के कारण अच्छी सेहत के साथ वर्ष का स्वागत करेंगे। शनि की चढ़ती साढ़ेसाती है, अतः वाहन चलाने  में अतिरिक्‍त सावधानी बरतने की ज़रूरत है। गुरू के कर्क में संक्रमण से प्रॉपर्टी में निवेश के लिए वर्ष की दूसरी छमाही आपके लिए लाभ देने वाला होगी। सुन्दरकाण्ड का पाठ आपको बड़ी परेशानियों से बचाएगा ।
धनु--- धनु राशि वालों के लिए यह वर्ष काफी अच्‍छा रहने वाला है। पूर्वार्ध में गुरू के मिथुन में होने तथा शनि-राहु युति ग्यारहवें भाव में रहने के कारण मीडियाकर्मियों के लिए यह वर्ष लाभदायक नज़र आ रहा है। आपके व्‍यापार में वृद्धि के संकेत हैं और नए साझेदार भी आपके साथ जुड़ेंगे। साथियों के साथ मतभेद जरा चिंता का विषय बन सकते हैं। आर्थिक लिहाज से बात करें तो पहली छमाही आपके अनुकूल दिखाई दे रही है। वर्ष की दूसरी छमाही में गुरू गुरू-सूर्य युति आठवें भाव में है, इस कारण बच्‍चों को कुछ परेशानी हो सकती है। परन्तु संपत्ति में वृद्धि के संकेत भी साफ़ नज़र आ रहे हैं। अष्टम राशीश लोगों के साथ विवाद के कारण आपको आप क़ानूनी पचड़ों में फँसा सकता है। बृहस्‍पतिवार का व्रत करने से आपकी चिंताएँ कम होंगी।
मकर---- वर्ष के प्रारम्भ से ही उच्च का शनि आपके लिए सकारात्‍मकता का वातावरण तैयार कर रहा है।वर्ष भर आप स्‍वयं को ऊर्जावान महसूस करेंगे। वाणिज्यिक दृष्टि से भी वर्ष के पहले छह महीने आपके अनुकूल नज़र आ रहे हैं।आपके आय और व्यय में सही संतुलन बना रहेगा। आपके सामाजिक दायरे में वृद्धि होगी। वर्ष के तीसरी भाग में राहु-मुक्त उच्चस्थ शनि आपके लिए सकारात्‍मकता वातावरण तैयार करते दिख रहे हैं।
व्‍यापारिक मोर्चे पर आपको कुछ महत्‍वपूर्ण फ़ैसले लेने पड़ सकते हैं। आपको कई स्रोतों से धन की प्राप्ति होगी। आपके जीवन-स्‍तर में बढ़ोत्तरी होती दिक रही है। प्रॉपर्टी में निवेश करने की के लिए यह समय आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगा। आपके नेतृत्‍व क्षमता में वृद्धि होगी। श्रीकृष्ण की आराधना चिन्ताओं से आपको मुक्त रखेगी।
कुम्भ---कुंभ राशि वालों के लिए मिथुनस्थ बृहस्‍पति तथा उच्चस्थ शनि के प्रभाव से यह वर्ष लाभ के अवसर ला रहा है।। साल की पूर्वार्ध में कारोबारी यात्राएँ करनी पड़ सकती हैं। फरवरी, जून, और अक्‍टूबर में आपको संपत्ति का लाभ होगा। निजी जीवन में कुछ परेशानियाँ आ सकती हैं। आपके किसी दूसरे स्‍थान पर बसने के संकेत भी नज़र आ रहे हैं। अतिरिक्त ऊर्जा, आत्मविश्वास और दृढ़संकल्पता से 2014 आपकी इच्‍छाओं की पूर्ति करने वाला साबित होगा।
सहकर्मियों और वरिष्‍ठ कर्मचारियों से सहयोग आपको अपने लक्ष्‍य की प्राप्ति करने में सहायता प्रदान करेगा। पदोन्नति, व्यावसायिक सफलता और समृद्धि आपका इंतज़ार कर रही हैं। दशरथकृत शनिस्तोत्र का पाठ आपको अनपेक्षित संकटों से बचाएगा।
मीन--- 2014 की शुरुआत आपके लिए आशा की किरण लेकर आएगी। छठे मंगल तथा चौथे गुरू आपके कैरियर और नौकरी में बदलाव होने की उम्‍मीद दे रहे हैं। शनि और राहु तुला राशि में स्थित होने से साझेदारी के लिए वर्ष अनुकूल नहीं दिख रहा है। दूर के रिश्तेदार से परेशानी के संकेत हैं। जून में गुरू का पंचम गोचर हालात में सुधार कर सकता है। बृहस्‍पति में शुक्र का प्रभाव प्रणय-सम्बन्धों में सकारात्मक प्रभाव बतला रहा है। अध्‍यात्‍म की ओर आपका झुकाव होगा।।
साझेदारी का व्‍यापार आपके लिए नुक़सानदेह हो सकता है। सरकारी विभाग आपके लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है। वर्ष की दूसरी छमाही में आपको कई दुविधायें हो सकती हैं। गुरुजनों का परामर्श लें तथा भगवान शंकर की आराधना करें।

Sunday, September 8, 2013

हरितालिका

आज हरितालिका तीज है....आलिभिर्हरिता यस्मात्तस्मात्सा हरितालिका अर्थात् सखियाँ पार्वती को 'पति के रूप में साक्षात् शिव ही मिलें' इस निमित्त तप करने के लिए हर कर ले गई थीं, इस कारण यह तिथि यानि भाद्रपद शुक्ल तृतीया हरितालिका कहलायी। सुखी और सम्मानपूर्ण दाम्पत्य मिले, दाम्पत्यजीवन तनावमुक्त हो, खुशियाँ घर में खिलखिलाती रहें, दम्पत्ति नीरोग रहें और परस्पर के प्रेमरुपी दूध में कभी खटास न आए..यह आकांक्षा सपना न रह जाए इस निमित्त सद्गृहिणियाँ हरितालिका व्रत निर्जला करती हैं.... कुमारियाँ भी मनवांछित जीवनसाथी मिले इस निमित्त यह व्रत कर सकती हैं।पति-पत्नी साम्ब सदाशिव का सविधि पूजन कर माता पार्वती की करबद्ध प्रार्थना करें.....
शिवायै शिवरुपिण्यै मङ्गलायै महेश्वरी।शिवे सर्वार्थदे देवि शिवरूपे नमोस्तु ते।।
शिवरूपे नमस्तुभ्यं शिवायै सततं नमः।नमस्ते ब्रह्मरूपिण्यै जगद्धात्र्यै नमो नमः।।
संसार-भय-संत्रस्तस्त्राहि मां सिंहवाहिनी।येन कामेन भो देवि पूजितासि परमेश्वरी।।
राज्यसौभाग्यं मे देहि प्रसन्ना भव पार्वती।मन्त्रेणानेन भो देवि पूजयेदुमया सह।।
अगले दिन सुबह आरती-पूजन के पश्चात् व्रत का दानपूर्वक पारण करें.....जगतः पितरौ यानि पार्वती-परमेश्वर की अकल्पनीय कृपा से जीवन सुवासित हो उठेगा। मानस का वचन इसे सुनिश्चित करता है....
जौं तप करैं कुमारी तुम्हारी। भविउ मेटि सकहिं त्रिपुरारी।। 

Tuesday, August 27, 2013

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी


जब-जब पृथ्वी पर सत्तामद में चूर अहंकारी अधर्मी असुरों की वृद्धि होती है, जब-जब अपने को अजर-अमर समझकर सत्तासीन क्रूरता नीति का सर्वथा त्याग कर देती है, जब-जब धर्म की हानि होती है और समूची धरती इनके अत्याचारों से त्राहि-त्राहि कर उठती है, तब-तब पृथ्वी पर सज्जनों की पीड़ा हरने के लिए बिबिध मनुज-शरीरों में कृपानिधि भगवान ने अवतार लिया है—
जब जब होहिं धरम के हानी।बाढैं असुर अधम अभिमानी।।
करहीं अनीति जाई नहिं बरनी।सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी।।
तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा।हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा।।
इसी श्रृंखला में श्वेतवाराह कल्प में वैवश्वत मन्वन्तर के अट्ठाइसवें द्वापर युग में भाद्रपद कृष्ण अष्टमी की मध्यरात्रि में पृथ्वी का संकट हरने के लिए मथुरा में माता देवकी के गर्भ से भगवान कृष्ण ने अवतार लिया--एक ऐसा अवतार जिसने विश्व को अपने कर्तव्य के प्रति सचेत होने, युगानुकूल धर्माचरण में प्रवृत्त करने तथा वंश-परिवारवाद से ऊपर उठकर समष्टिहित में अन्याय और शोषण के विरुद्ध खड़े होने का गीतारुपी विगुल फूँका तथा जिसके स्मरण मात्र से दैहिक-दैविक-भौतिक त्रिविध संताप नष्ट हो जाते हैं।   
मनीषा ने साधना के लिए चार रात्रियों का विशेष माहात्म्य बताया है-  कालरात्रि (दीपावली), महारात्रि (दुर्गाष्टमी), मोहरात्रि (श्रीकृष्णजन्माष्टमी) और शिवरात्रि। जन्माष्टमी का व्रत व्रतराज कहा गया है।  जिनके जन्म के संयोग मात्र से बंदी गृह के सभी बंधन स्वत: ही खुल गए, सभी पहरेदार घोर निद्रा में चले गए, माँ यमुना जिनके चरण स्पर्श कर धन्य-धन्य हो गईं- उन भगवान श्रीकृष्ण को सम्पूर्ण सृष्टि को मोह लेने वाला अवतार माना  गया है। इसी कारण जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा गया है। इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान करते, नाम-कीर्तन करते अथवा मंत्र जपते हुए जगने से संसार की मोह-माया से आसक्ति हटती है, प्राणियों के  सब क्लेश दूर हो जाते हैं, दुख-दरिद्रता से उद्धार होता है और इस लोक में सुख भोग कर मनुष्य जन्म-मरण के चक्र से छूटकर परमलोक को प्राप्त करता है।
इस वर्ष श्रीकृष्णाष्टमी का व्रत 28अगस्त (बुधवार) को है तथा श्रीकृष्णजन्मोत्सव का पावन समय रात्रि 11.36 पर है। सुखद संयोग है कि इस वर्ष तिथि के साथ ही भगवान का प्रिय नक्षत्र रोहिणी भी जन्मसमय पर उदित है। व्रत का पारण 29 अगस्त (बृहस्पतिवार) को सूर्योदय के पश्चात प्रथम प्रहर में अपेक्षित है।
पुराणों  के अनुसार जिस राष्ट्र या प्रदेश में यह व्रतोत्सव किया जाता है, वहां पर प्राकृतिक प्रकोप या महामारी का ताण्डव नहीं होता। मेघ पर्याप्त वर्षा करते हैं तथा फसल खूब होती है। जनता सुख-समृद्धि प्राप्त करती है। इस व्रतराज के अनुष्ठान से सभी को प्रेय और श्रेय दोनों की प्राप्ति होती है। व्रत करने वाला भगवत्कृपा का भागी बनकर इस लोक में सब सुख भोगता है और अन्त में वैकुंठ जाता है। कृष्णाष्टमी का व्रत करने वाले के सब क्लेश दूर हो जाते हैं, दुख-दरिद्रता का नाश होता है। जीवनसाथी, संतान, आरोग्य, आजीविका आदि  सहज सुलभ हो जाते हैं।
व्रत-विधि---- इस व्रत को करने वाले व्रत के एक दिन पूर्व हल्का-सात्विक भोजन करें तथा पूजन-स्थान की सफाई कर लें। उपवास वाले दिन सूर्योदय से पहले उठकर, स्नान आदि नित्यक्रिया से निवृत होकर पूजन-स्थान पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके बैठें। घी का दीपक या धूपबत्ती या दोनों जलाकर गणेश-अम्बिका, पार्वती-शंकर, इष्टदेवता, कुलदेवता, ग्रामदेवता, स्थानदेवता और लोकपालों का ध्यान कर हथेली पर जल, अक्षत, सुपारी, फूल और द्रव्य रखकर मन में अपनी कामना-पूर्ति की इच्छा के साथ उपवास सहित व्रत का संकल्प करें-
संकल्प--- मम  अखिल पाप प्रशमनपूर्वकं सर्वाभीष्ट सिद्धये श्रीकृष्णाष्टमी व्रतोपवासं अहं करिष्ये।
संकल्पित होकर संयमपूर्वक मन, वाणी और शरीर से पवित्र रहकर व्रत का पालन करें। उपवास के दिन झूठ बोलने, जुआ खेलने, सज्जनों-स्त्रियों का अपमान करने तथा अपशब्द बोलने से बचें। व्रत के दिन बार-बार जल पीने से, एक ही बार पान-तम्बाकु के उपभोग से, दिन में सोने से तथा मैथुन से व्रत भंग हो जाता है।
असकृज्जलपानाच्च सकृत्ताम्बूलचर्वणात्।
उपवासः प्रणश्येत दिवास्वापाच्च मैथुनात्।।
ध्यान रहे कि विवशता में उपवास का कोई मतलब नहीं है। यदि पूर्ण निराहार नहीं कर सकें तो फलाहार, दुग्धपान कर सकते हैं किन्तु फलाहार के नाम पर चाट-पकौड़े, पकौड़ी, आलू की टिक्की आदि का सेवन बिल्कुल ही ना करें। इन्द्रियों पर संयम ना हो तो व्रत कदापि न करें। माता देवकी सहित वासुदेव श्रीकृष्ण का ध्यान करते, नाम-कीर्तन करते अथवा मंत्र जपते हुए रात्रि जागरण करें। यदि पूरी रात नहीं जग सकें तो भगवान् के जन्मकाल के समय पूजन-आरती तक अवश्य जगें।
पूजन-विधि—
सूर्यास्त के बाद स्नानादि से निवृत होकर पूजा-स्थान पर सपरिवार बैठकर भगवान का गर्भवास स्थिर लग्न में शाम 7:40 के पहले कर लें। इसके लिये काँसे के कटोरे में दूध डालकर उसमें लड्डूगोपाल की प्रतिमा अथवा शालिग्राम रखें तथा ढक दें। अखण्ड दीप जलाकर पूजन-थाली सजा लें—
सामग्री—
कलश, काँसे की थाली, गंगाजल, अक्षत, सुपारी, पान के पत्ते, चन्दन, रोली, सिन्दूर, धूप, दीपक, कपूर, रूई की बत्ती, माचिस, मौली, एक साफ रुमाल, भगवान के कपड़े, मुकुट, मोरपंख, बाँसुरी, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर), फल (ऋतुफल तथा खीरा) फूल, तुलसीदल, कुशा, आम के पत्ते तथा नजर उतारने के लिये अजवाइन और मिट्टी का कसोरा रख लें।
सविधि कलश स्थापित कर लें।
अब प्रसाद तैयार करें—
प्रसूता को दी जानेवाली हल्दी तथा अछवाइन (सूखे मेवों का पाक), भूने धनिया और शक्कर का चूर्ण, साबूदाने की खीर, सिंघाड़े का हलवा, माखन,
इसके बाद अपनी श्रद्धा से पुरुष सूक्त, श्री गजेन्द्र-मोक्ष (विपत्तिनाश के लिये), श्री विष्णु-सहस्रनाम आदि से भगवान् की स्तुति करें और सामर्थ्य भर निम्नलिखित किसी एक मन्त्र का जप-कीर्तन करें।
 ॐ नमो नारायणाय ” 
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
प्रणत: क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः।।
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव
वसुदेवसुतंदेवं कंसचाणूरमर्दनम्।
देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगदगुरुं
संतान प्राप्ति के लिये संतानगोपाल मन्त्र का जप करें—
देवकी सुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं ब्रजे।।
जप के लिये तुलसी, स्फटिक अथवा कमलगट्टे की माला लेनी चाहिये। माला न हो तो हाथ पर ही जप करें। रुद्राक्ष की माला प्रयोग में कदापि न लाएँ।
जन्मकाल के ठीक पहले श्रीमन्महागणाधिपतये नमः, देवक्यै नमः, वसुदेवाय नमः, बलभद्राय नमः, सुभद्रायै नमः, यशोदायै नमः, नन्दायै नमः का उच्चारण करें तथा हाथ में फूल-अक्षत लेकर माता देवकी की पूजा करें—
प्रणमे देव-जननी त्वया जातस्तुवामनः
गायद्भिः किन्नराद्यैः सतत परिवृता वेणुवीणानिनादैः
भृङ्गारादर्शकुम्भप्रवरयुतकरैः सेव्यमाना मुनीन्द्रैः
पर्यङ्के राजमाना प्रमुदितवदना पुत्रिणी सम्यगास्ते
सा देवी-देवमाता जयति सुरमुखा देवकी कान्तरूपा
जन्म-समय पर श्री रामचरितमानस के राम-जन्म के छन्द काँसे की थाली और ताली की थाप तथा जयघोष के साथ पढ़ें—
भये प्रगट कृपाला, दीन दयाला, कौसल्या हितकारी.....
भगवान् को दूध से निकलकर स्नान, पंचामृत स्नान, स्वच्छ जल से पुनः स्नान करायें तथा रुमाल से पोंछकर वस्त्रादि से सज्जित करें। मिट्टी के कसोरे में कपूर जलाकर अजवायन से भगवान् की नजर उतारें। अब उनका सविधि उपचारों से पूजन करें और भोग अर्पित करें। अन्त में आरती उतारें, प्रार्थना करें और पुष्पाञ्जली दें।
व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद माता के साथ बालकृष्ण की पूजा-अर्चना करें। सत्पात्रों को यथाशक्ति दान देकर पारण करें।
सम्पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से किया गया यह व्रत सभी अभीष्ट देनेवाला हो- इसी के साथ सबको श्रीकृष्णाष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।