Friday, November 2, 2012

मोदी का गुजरात या गुजरात के मोदी



अनुराधा के 2रे चरण यानि वृश्चिक राशि और लग्न में जन्मे श्री नरेन्द्र मोदी की जन्म-पत्रिका स्पष्ट कर देती है कि क्यों मोदी किसी भी झंझा में अविचलित रहते हैं, क्यों तमाम शत्रुओं का हर वार उनका अपना अस्त्र बन जाता है।
1)      स्वराशि वृश्चिक का मंगल लग्नस्थ होकर रूचक महापुरुषयोग बना रहा है, साथ ही श्री मोदी को शानदार तथा प्रभावशाली वक्तृत्व कौशल दे रहा है।
2)      चंद्रमा का नीच भंग करते मंगल और गुरु प्रबल राजयोगकारक हैं
3)      चंद्रमा से केन्द्र में लग्न के दूसरे भाव का का स्वामी गुरू है जो अखण्ड साम्राज्य देता है।
4)      लग्न में लग्नेश मंगल और भाग्येश चंद्रमा की युति कुशल राजनेतृत्व दे रही है।
दशम भाव में प्रजासुख के कारक ग्रह शनि एवं शुक्र के केन्द्र में होने से
1)      पराक्रमी, साहसी, तर्क के साथ शीध्र निर्णय लेने की क्षमता,
2)      शत्रुओं एवं विरोधियो पर काबू पाने वाला
3)      प्रशासन का सफल संचालन करने की क्षमता
4)      जनता को खुश करने व सेना नायक के रूप में अपनी छवि बनाने वाला
5)      शुक्र और शनि की युति इन्हें साम, दाम, दण्ड और भेद- इन कुटनीति के चारों अस्त्रों से सुशोभित कर रही है।
सूर्य एवं शनि  क्रमशः 00.35 अंश (बाल्यावस्था) और 29.39 अंश ( मृत) पर सूर्य के स्वामीत्व वाले उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हैं। इस कारण इन ग्रहों का क्रूर प्रभाव निर्बल हो गया है जिससे दोनों के मध्य शत्रुता कम हुयी है।
दशम भावस्थ शनि-शुक्र युति और गुरु का दृष्टि-सम्बन्ध जनता में स्वच्छ छवि के साथ ही भ्रष्टाचार पर अंकुश एवं सुप्रशासन चलाने में श्री मोदी को सक्षम करते हैं।
एकादश भाव में उच्च के वक्री बुध एवं केतु सूर्य के नक्षत्र में हैं। इन दोनों ग्रहों की युति सूर्य के साथ होने से गुजरात राज्य में देशी एवं विदेशी आर्थिक निवेश को लाने में श्री मोदी कूटनीतिक रूप से अन्य मुख्यमंत्रियों से अधिक सफल हुए हैं।
लग्न एवं छठे भाव के स्वामी मंगल का स्वगृही होकर लग्न में होना श्री मोदी को शत्रुओपर विजय देता रहा है लेकिन स्वयं को ही स्वयम् का शत्रु बना देता है।
लग्न स्थिर राशि का और अधिकांश ग्रह स्थिर राशि में हैं इसकारण श्री मोदी लोकप्रिय, दृढ़ और कुशल प्रशासक होने के साथ ही हठी और परिवर्तन स्वीकार करने में कठिनाई महसूस करते हैं।
लग्न में स्थित भाग्य भाव का स्वामी नीच राशि का चंद्रमा व स्वगृही मंगल की पूर्ण दृष्टि संगठन भाव पर होने से श्री मोदी की विचारधारा से कभी कभी संगठन के साथ वैचारिक मतभेद होते रहते हैं।
कुंडली में सूर्य, शनि दोनो ही कम अंशों के साथ सूर्य के नक्षत्र में होने से सूर्य बलशाली रहा है।

दशमेश सूर्य की महादशा में इन्हे 2005 तथा 2007 में अत्यंत प्रभावशाली अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों के साथ अनेक प्रतिष्ठापरक सम्मानों से नवाजा गया है।
किन्तु गुरु शनि की आपस में पूर्ण दृष्टि एवं पंचम भाव में राहु और उस पर सूर्य बुध तथा केतु की दृष्टि होने के कारण मोदी न्यायायिक विवादों में फँसते रहे हैं। पंचम भाव में बैठा राहु अपनी अंतर्दशा और प्रत्यंतरदशा के समय इन्हें प्रजा से संबंधित विवादों में डालता रहा है।शनि की चढ़ती साढ़ेसाती और वृश्चिक में नीच का राहु श्री मोदी के मार्ग की बड़ी बाधाएँ है पर भाग्येश चंद्रमा में लग्नेश मंगल की दशा 28.9.2012 से 29.4.2013 तक है। इस कारण बावजूद तमाम बाधाओं के 20 दिसम्बर 2012 को विजयश्री निश्चय ही नरेन्द्र मोदी का वरण करेगी।

Sunday, May 13, 2012

अभी नहीं होगा महाप्रलय


भारतीय ज्योतिष सिद्धान्तानुसार पृथ्वी की आयु 4 अरब 32 करोड़ वर्ष है जिसमें अभी तक 1 अरब 57 करोड़ 39 लाख 49 हजार 110 वर्ष ही बीते हैं। इसका अर्थ है कि 2 अरब 74 करोड़ 60 लाख 50 हजार 890 वर्ष अभी और काटने पड़ेंगे महाप्रलय की प्रतीक्षा में। वर्ष-प्रवेश के समय शनि के साथ सूर्य, मंगल, गुरू या राहु अथवा गुरू के साथ मंगल की युति पृथ्वी के विनाश का सूचक है।
अर्कसौरी भौमसौरी तमस्सौरीज्यमंगलौ।
गुरूसौरी महायोगो महीनाशाय कल्पते।।
परन्तु सम्वत् 2068 की वर्षकुण्डली में ऐसा कोई योग नहीं है। साथ ही संहिता ग्रन्थों में पृथ्वी के शुभाशुभ फल विचार हेतु चार मण्डलों- अग्नि, वरुण, वायु तथा चन्द्रमण्डल, का विवेचन किया गया है। वरुण और चन्द्रमण्डल शुभ तथा अग्नि और वायुमण्डल अशुभ फलदायक हैं। सम्वत्सर प्रवेश के समय सारे नैसर्गिक पापग्रह किसी एक अशुभ मण्डल में हों तो उस मण्डल के प्रकृतिजन्य देशों, राष्ट्रों और भूभागों में विप्लव की स्थिति बनती है। नव सम्वत्सर विश्वावसु का प्रवेश चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, शुक्रवार तदनुसार 23 मार्च,2012 को रात्रि में 8 बजकर 7 मिनट पर उत्तराभाद्रपद नक्षत्र एवम् शुक्ल योगकालीन कन्या लग्न में प्रविष्ट हो रहा है। सम्वत् 2069 का वर्षप्रवेश लग्न कन्या है। नव सम्वत प्रवेश के समय सूर्य, चन्द्रमा और बुध उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में, मंगल मघा में, गुरू और शुक्र भरणी में, शनि चित्रा में, राहु अनुराधा तथा केतु रोहिणी में संचार कर रहे हैं। अर्थात् सूर्य, चन्द्रमा और बुध वरुणमण्डल में, मंगल, गुरू और शुक्र अग्निमण्डल में, शनि वायुमण्डल में, राहु तथा केतु चन्द्रमण्डल में स्थित हैं। पापग्रह शनि और मंगल क्रमशः अग्नि तथा वायुमण्डल में होने से देश के दक्षिण-पश्चिम और पूर्वोत्तर भागों में तथा दक्षिण-पश्चिमी देशों और मध्य एशिया के देशों में अग्निकाण्ड, भूकम्पों, विस्फोटकों और झंझावातों की भयावह स्थिति हो सकती है किन्तु प्रलय की बात कल्पनामात्र रहेगी।
भूकम्पादि महोत्पातो जायते यत्र मण्डले।
तत्तत्स्वभावजं द्रव्यं जन्तून् देशाञ्च पीड़येत्।।

           

Thursday, April 12, 2012

नव सम्वत्सर 2069

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, शुक्रवार तदनुसार 23 मार्च,2012 को रात्रि में 8 बजकर 7 मिनट पर विश्वावसु सम्वत्सर का प्रवेश उत्तराभाद्रपद नक्षत्र एवम् शुक्ल योगकालीन कन्या लग्न में प्रविष्ट हो रहा है। सम्वत् 2069 का वर्षप्रवेश लग्न कन्या है। वर्ष लग्नेश बुध अस्तंगत होकर सप्तम भाव में अपनी नीच राशि मीन में मंगल की आठवीं अशुभ दृष्टि से आक्रान्त है और वर्ष लग्न भी दो पाप ग्रहों, शनि और मंगल के बीच पापाक्रान्त है, पापकर्तरी योग बना रहा है। अन्ताराष्ट्रीय सम्बन्धों का स्वामी सप्तमेश गुरू अष्टम भाव में शत्रुग्रह शुक्र के साथ बैठा है। अतः पृथ्वी अनेक प्रकार के उपद्रवों और घोर रोगों से आकुल दिखेगी।

पूर्वी प्रान्तों (बंग, उत्कल, बिहार), मध्य (छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश) तथा उत्तरी भाग में हिंसक उपद्रव, राजनैतिक विग्रह और सीमावर्ती प्रदेशों में अग्निकाण्ड, सत्ता-परिवर्तन और विदेशी अतिक्रमणों से देश जूझता दिखेगा। राजनेताओं और मन्त्रियों में परस्पर विद्वेष एवम् तनाव चरम पर दिखेगा। किसी प्रतिष्ठित विभूति के निधन से देश मर्माहत हो सकता है। पश्चिमतटीय भागों तथा उत्तरी-पर्वतीय हिस्सों में अतिवृष्टि, भूस्खलन, भूकम्प जैसे प्राकृतिक प्रकोप दिखेंगे। अर्थात् राजनेता, प्रशासनिक अधिकारी और लोकमानस के साथ-साथ प्रकृति भी क्षुब्ध और कुपित दिखेगी।

अब्देविश्वावसौ शश्वद् घोररोगाकुलाधराः।

सस्यार्घवृष्टयोमध्याभूपालानातिभूतयः।।

कन्यायाम् दक्षिणेदेशे-मरिस्यात् तथा बंगेप्युपद्रवः।

लोकदुखं पश्चिमायां विग्रहः अन्न समर्घता।।

............ प्राच्यामुदीच्याम् राज-विग्रहः।

मध्यदेशे छत्र भंगः समर्घत्वं घृते पुनः।।

चान्दी, दूध और दूध से बने उत्पाद( घी, पनीर), जीवनरक्षक दवाएँ, तेल, पेट्रोलियम पदार्थों के साथ-साथ धान्यादि के मूल्य आसमान चूमेंगे। अनुकूल वर्षा में कमी, कमरतोड़ महँगाई, क्लिष्ट रोगों की अधिकता, हिंसक उपद्रव और अभावों से जनजीवन हलकान रहेगा। शासक वर्ग परस्पर विद्वेष लोभ और अहंकारवश राजधर्म से विमुख होगा।

बावजूद इन सबके भारतवर्ष इंजीनियरिंग, कम्प्युटर, दूरसंचार, उच्च-तकनीकि शिक्षा, अन्ताराष्ट्रीय निर्यात आदि क्षेत्रों में आशातीत सफलता प्राप्त करेगा। अमेरिका, जापान, ब्रिटेन, जर्मनी के साथ सोवियत रूस से सम्बन्धों में प्रगाढ़ता आएगी।

खप्पर योग 7 अप्रैल से 3 जुलाई तक वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ महीनों में क्रमशः 5 शनिवार, 5 रविवार और 5 मंगलवार पड़ने से अत्यंत अनिष्टकारी खप्पर योग बन रहा है।

शनिः स्यात् आद्यसंक्रान्तौ द्वितीयायाम् प्रभाकरः।

तृतीयायाम् कुजो योगः खर्पराखयोति कष्टकृत्।।

साथ ही वर्ष के प्रारम्भ से ही शुभ ग्रहों (बुध और गुरू) का अतिचारी होना और शनि का वक्री होना विश्व के लिए हाहाकारी समय का सूचक है।

अतिचार गते जीवे वक्री भूते शनैश्चरे।

हा! हा! भूतं जगत् सर्वम् रूण्डमाला महीतले।।

मेष और तुला राशियों पर गुरू और शनि का समसप्तक योग, वर्षलग्नेश बुध का वर्ष और जगत् लग्न- दोनों कुण्डलियों में नीच का होकर क्रमशः सातवें और छठे भाव में बैठना, जगत् लग्नाधिपति शुक्र का केतु के साथ आठवें भाव में जाना जाड़े में हिमपात की तरह होगा, जब कि इस वर्ष शुक्र को वर्ष के राजा और मंत्री दोनों का अधिकार प्राप्त है।

सम्पूर्ण विश्व में प्राकृतिक प्रकोप अपने चरम पर होंगे, स्त्रियों पर अत्याचार और यौन अपराधों के साथ ही यौन उत्श्रृंखलता और यौन रोगों, मधुमेह, कैंसर आदि में वृद्धि होगी, शासक वर्ग के प्रति भयंकर असंतोष और विद्रोह के लक्षण भी दिख रहे हैं। सरकारी तंत्र आपसी ताल-मेल से हीन होंगे, आकस्मिक दुर्घटनाओं, जानलेवा विस्फोटकों, जबर्दस्त महँगाई तथा चरमराते आर्थिक हालात से भारत ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व हलकान होगा।

स्वयं राजा स्वयं मंत्री जनेषु रोग पीड़ा विग्रह भयं च नृपाणाम्।।

ईश्वर के प्रति भयवश श्रद्धा का दिखावा अतिरेक की हद तक होगा। यह सच्चे मन से ईश्वर को गुहार लगाने का समय है। ईश्वर हमें सद्बुद्धि और विवेक दें।