भारतीय ज्योतिष
सिद्धान्तानुसार पृथ्वी की आयु 4 अरब 32 करोड़ वर्ष है जिसमें अभी तक 1 अरब 57
करोड़ 39 लाख 49 हजार 110 वर्ष ही बीते हैं। इसका अर्थ है कि 2 अरब 74 करोड़ 60
लाख 50 हजार 890 वर्ष अभी और काटने पड़ेंगे महाप्रलय की प्रतीक्षा में। वर्ष-प्रवेश
के समय शनि के साथ सूर्य, मंगल, गुरू या राहु अथवा गुरू के साथ मंगल की युति
पृथ्वी के विनाश का सूचक है।
अर्कसौरी भौमसौरी
तमस्सौरीज्यमंगलौ।
गुरूसौरी महायोगो महीनाशाय
कल्पते।।
परन्तु सम्वत् 2068 की
वर्षकुण्डली में ऐसा कोई योग नहीं है। साथ ही संहिता ग्रन्थों में पृथ्वी के
शुभाशुभ फल विचार हेतु चार मण्डलों- अग्नि, वरुण, वायु तथा चन्द्रमण्डल, का विवेचन
किया गया है। वरुण और चन्द्रमण्डल शुभ तथा अग्नि और वायुमण्डल अशुभ फलदायक हैं।
सम्वत्सर प्रवेश के समय सारे नैसर्गिक पापग्रह किसी एक अशुभ मण्डल में हों तो उस
मण्डल के प्रकृतिजन्य देशों, राष्ट्रों और भूभागों में विप्लव की स्थिति बनती है।
नव सम्वत्सर विश्वावसु का प्रवेश चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, शुक्रवार तदनुसार 23 मार्च,2012 को रात्रि
में 8 बजकर 7 मिनट पर उत्तराभाद्रपद नक्षत्र एवम् शुक्ल योगकालीन
कन्या लग्न में प्रविष्ट हो रहा है। सम्वत् 2069 का वर्षप्रवेश लग्न
कन्या है। नव सम्वत प्रवेश के समय सूर्य, चन्द्रमा और बुध
उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में, मंगल मघा में, गुरू और शुक्र भरणी में, शनि चित्रा में,
राहु अनुराधा तथा केतु रोहिणी में संचार कर रहे हैं। अर्थात् सूर्य, चन्द्रमा और बुध
वरुणमण्डल में, मंगल, गुरू और शुक्र अग्निमण्डल में, शनि वायुमण्डल में, राहु तथा केतु
चन्द्रमण्डल में स्थित हैं। पापग्रह शनि और मंगल क्रमशः अग्नि तथा वायुमण्डल में
होने से देश के दक्षिण-पश्चिम और पूर्वोत्तर भागों में तथा दक्षिण-पश्चिमी देशों और
मध्य एशिया के देशों में अग्निकाण्ड, भूकम्पों, विस्फोटकों और झंझावातों की भयावह
स्थिति हो सकती है किन्तु प्रलय की बात कल्पनामात्र रहेगी।
भूकम्पादि महोत्पातो जायते यत्र मण्डले।
तत्तत्स्वभावजं द्रव्यं जन्तून् देशाञ्च पीड़येत्।।
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