Saturday, August 1, 2015

सावन-2015 में कैसे करें शिवपूजन


 
एक अगस्त, शनिवार से श्रावण मास प्रारंभ होगा. श्रवण से शुरू और श्रवण में पूर्णिमा का आगमन....वामनरूप विष्णु श्रवण के देवता हैं तथा सोम यानि चन्द्रमा स्वामी.... कष्टमुक्ति, स्थिर आरोग्य और परम ऐश्वर्यदायी होगी इस सावन में भोलेभंडारी की आराधना।

उर्ध्वमुख और चर संज्ञक श्रवण नक्षत्र में आयुष्मान योग, सर्वार्थ सिद्धियोग, यायिजय योग और द्विपुष्कर योग है। इस योग में भगवान आशुतोष की आराधना परम ऐश्वर्य का वरदान देती है। जिनकी कुंडली में कालसर्प योग, गुरु चंडाल योग, पितृ दोष अथवा केमद्रुम योग है,...मारकेश की दशा भुक्ति है, अथवा शनितुल्य क्रूर ग्रहों के गोचर से आय पर संकट आ खड़ा हुआ है, उन्हें इस सावन के प्रथम दिन लघुरुद्राभिषेक करना चाहिये।

इस सावन 5 शनिवार हैं....... शनिवार के व्रत करने, शनिवार को शमीपत्र, धत्तूर तथा कालेतिल युक्त दूध से भगवान आशुतोष की पूजा करने तथा पंचामृत से अभिषेक करने से अवग्रहों की कुटिल दृष्टि से मुक्ति मिलेगी, स्थिर आरोग्य और ऐश्वर्य प्राप्त होगा।

इस सावन के चारों सोमवार चतुर्विध पुरुषार्थ देने वाले हैं.... इस सावन के पहले सोमवार (3 अगस्त) को शतभिषा नक्षत्र व गणेश चतुर्थी है...संतानसुख में आयी बाधा इस सोमव्रत से अवश्य दूर होगी।

दूसरे सोमवार (10 अगस्त) को कामिनी एकादशी के दिन शिवार्चना धन-सम्पदा-ऐश्वर्य की कामना पूर्ण करने वाली है।

तीसरे सोमवार 17 अगस्त को पू. फा. नक्षत्र में गौरी पूजन व हरियाली तीज का व्रत होगा। यह व्रत दाम्पत्यसुख के लिए अत्यन्त शुभ है।

 24 अगस्त को अंतिम सोमवार को नवमी तिथि व ज्येष्ठा नक्षत्र का संयोग है... साम्बसदाशिव की आराधना मोक्षदायक होगी.....

सावन में कैसे करें शिवपूजा

सावन में पार्थिव पूजन... सावन में मनसा पूजन, पार्थिव पूजन अथवा ज्योतिर्लिंगों के पूजन का बहुत महत्व है। पार्थिवपूजन से आशुतोष शीघ्र प्रसन्न होते हैं।

 

पूजन सामग्री-

मिट्टी शमी या पीपल के जड़ की, विमौट(दीमक की मिट्टी), गंगादि पवित्र स्थानों की मिट्टी, किसी पवित्र स्थान पर जमीन के चार अंगुल नीचे की मिट्टी

- फूल, अक्षत, रोली, सिंदूर, भस्म, पान, सुपारी, लौंग, ईलायची, पंचमेवा, रूद्राक्ष की माला, बत्ती, मिट्टी के दीपक, जनेऊ, अगरबत्ती, बेलपत्र, मिट्टी का कटोरा, माचिस, कपूर, धतुर फल, दूब, कुश, गंगाजल, घी, दूध, दही, शहद, शक्कर, ऋतुफल, कांसे की प्लेट, पूजा की थाली, पूजा के लिये स्वच्छ जल, कांसे का परात, कांसे का कटोरा, पेंदी में बारीक छेद किया हुआ तांबे का लोटा या शृंगी।

पूजन-विधि

- कुशा की पवित्री धारण कर आचमन करें तथा रक्षा दीप जला लें।

- ऊँ ह्राँ पृथिव्यै नमः का जप करते हुए कांसे की प्लेट में आवश्यकतानुसार मिट्टी लेकर पानी का थोड़ा छींटा डालें।

- हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर गणपति के साथ माता गौरी का स्मरण करें और सादर पुष्प-अक्षत परात में डाल दें। परात के बीच में कांसे का औंधा कटोरा रख दें।

- दाहिने हाथ में अर्घ्य पात्र [मिट्टी का कटोरा] लेकर उसमें तीन कुश, सुपारी, पुष्प, अक्षत, जल और द्रव्य रखकर इच्छा का संकल्प करें और वहीं सामने रख दें।

- ऊँ नमः शिवाय-- इस मंत्र का लगातार जप करते हुए मिट्टी से शिवलिंग गढ़ें। शिवलिंग अंगूठे से बड़ा न हो।

- कांसे के औंधे कटोरे पर बेलपत्र रखकर उसपर शिवलिंग रखें। शिवलिंग पर मिट्टी की छोटी गोली रखें। उस लिंग के चारों ओर दस लिंग रखें।

- ग्यारह लिंगों को पान के पत्ते अथवा बेलपत्र से ढक दें जिससे पानी आदि से लिंग की मिट्टी न बहे।

- फिर मंत्र ऊं नमो भगवते सांबसदाशिव पार्थिवेश्वराय नमः का जप करते हुए माता पार्वती के साथ भगवान् शंकर के आवाह्न, प्राणप्रतिष्ठा और आसन के लिये शिवलिंग पर फूल-अक्षत अर्पित करें। फिर अर्घ्य,पाद्य, आचमन और स्नान के लिये जल अर्पित करें। फिर पंचामृतस्नान, शुद्ध स्नान और आचमन निवेदित करें।

अभिषेक-विधि.....

छिद्रदार लोटे या शृंगी में केसर मिश्रित दूध अथवा अपनी कामना के अनुसार द्रव्य भरकर से भगवान् का अभिषेक करें।

अभिषेक मंत्र ....

ऊँ नमः शम्भवाय च मयोभवाय च

नमः शंकराय च मयस्कराय च

नमः शिवाय च शिवतराय च

इस मंत्र से भगवान का अभिषेक करें (108 बार मंत्र)

- फिर ऊँ नमो भगवते सांबसदाशिव पार्थिवेश्वराय नमः का जप करते हुए शुद्ध स्नान, आचमन, वस्त्र, जनेऊ, आचमन, चंदन, भस्म, अक्षत और पुष्प अर्पित करें।

फिर बेलपत्र पर चन्दन से राम-राम लिखकर भगवान् को अर्पित करें।

फिर ऊँ नमो भगवते सांबसदाशिव पार्थिवेश्वराय नमः का जप करते हुए दूब, धूप, दीप, नैवेद्य [पञ्चमेवा],आचमन, ऋतुफल, धतूर फल और लौंग-सुपारी युक्त पान अर्पित करें।

 

- आरती करें, क्षमा प्रार्थना और कार्य सिद्धि की प्रार्थना करते हुए पुष्पांजली दें।

- आधी प्रदक्षिणा करें और फिर आने का आग्रह करते हुए विसर्जित करें।

- विसर्जन के लिये ऊँ शान्तिः ऊँ शान्तिः ऊँ शान्तिः कहते हुये परात हिला दें और सावधानी से पूजन-सामग्री सहित शिवलिंग उठाकर किसी नदी, तालाब अथवा पीपल के पेड़ के नीचे रख दें।

 
जो श्रद्धालू मंदिर जाकर पूजा करेंगे वे आधी प्रदक्षिणा कर अर्घे से गिरती जलधारा से जल लेकर पान करेंगे..घर आकर सभी जगह छींट देंगे।

 

भगवान शिव के पूजन क्रम में रुद्राभिषेक अतीव फलदायी माना गया है। विशेष कामनाओं के लिए विशेष द्रव्य से अभिषेक का विधान कहा गया है

व्याधि शान्ति के लिए कुशोदक से

श्रीसम्पन्नता हेतु गन्ने के रस से

धन के लिए शहद

मोक्ष के लिए तीर्थ-जल से

संतान प्राप्ति हेतु गोदुग्ध से

शत्रुमुक्ति के लिए सरसों के तेल से

विवाह के लिए केसर -हल्दी मिश्रित दुध से अभिषेक करना चाहिए।

 

 

 

No comments:

Post a Comment