सर्वार्थसिद्धि योग और रवियोग युक्त श्रावणमास के अन्यतम
पर्वों में से एक... बुधवार का दिन,
1)नागपंचमी सावन शुक्ल पंचमी में ही क्यों......
सब जानते हैं कि वर्षाऋतु में नागजाति बिल में पानी भर जाने
से बाहर निकलते हैं। अंधकारप्रिय होने के कारण और बिलों से बाहर निकल जाने के कारण
श्रावण शुक्ल पंचमी प्रत्यक्ष नागपूजन का उपयुक्त अवसर है क्योंकि इस दिन प्रकाश
कुछ ही देर तक रहता है, अंधकार की बहुलता होती है।
पंचमी तिथि के स्वामी नाग होते हैं। अग्निपुराण के अनुसार,
शेष आदि दिव्य सर्पों का पूजन पंचमी को करें।
2) नागपूजन की पौराणिक मान्यताएँ.....
वैसे तो साँप
एक सामान्य जीव है, लेकिन देवता के रूप में बारह दिव्यसर्पों का उल्लेख वेदों में मिलता है।
अहिबुद्घ नामक नाग की पूजा का प्रमाण ऋग्वेद में मिलता है। इस पर्व से संबंधित कई
लोक-कथाएँ एवं मान्यताएँ जुड़ी हुयी हैं।
कहा जाता
है कि एक बार नागराज तक्षक ने सम्राट परीक्षित को डँस लिया। इससे उसका पुत्र
जनमेजय बहुत ही क्रोधित हुआ। तक्षक से अपने पिता का प्रतिशोध लेने का निश्टय कर उसने
नागविनाश के लिए नागमेध यज्ञ प्रारम्भ कर दिया। तब देवर्षि नारद सम्राट जनमेजय के
पास पहुँचे और उसे भलीभांति समझाया। प्रायश्चित स्वरूप उसने नागों की पूजा की।
मान्यता है कि उसी दिन से प्रतिवर्ष श्रावणशुक्ल की पंचमी तिथि को नागपंचमी मनायी
जाने लगी। श्रीमहाभारत के आदिपर्व में आस्तीकखण्ड के 58वें अध्याय में उल्लिखित है
कि इस यज्ञ में आस्तीक मुनि ने सर्पों से वचन लिया था। इसलिए आस्तीक मुनि के वचनों
के पाठ और जप से सर्पदोषों से तत्क्षण मुक्ति मिल जाती है।
यो जरत्कारुणा जातो जरत्कारौ महावशाः।
आस्तीकः सर्पसत्रे वः पन्नगान्योभ्यरक्षत।
तं स्मरन्तं महाभागा न मां हिंसितुमर्हथ।
सर्पापसर्प भद्रं ते गच्छ सर्प महाविष।
जनमेजयस्य यज्ञान्ते आस्तीकवचनं स्मर।।
आस्तीकस्य वच श्रुत्वा यः सर्पः न निवर्तते।
शतधा भिद्यते मुर्धा शिंशवृक्ष फलं यथा।।
पुराणों के
अनुसार, यमुना नदी में एक भयंकर जहरीला विशाल कालिय नाग रहता था। उसके विष से नदी
का जल ही नहीं, आसपास
के पेड़-पौधे, वनस्पतियां, मिट्टी तक
विषैली हो गयी थी। ब्रजवासी उसके आतंक से पीड़ित थे। लोगों की प्रार्थना पर भगवान
श्रीकृष्ण ने कालिय नाग को कालियदह से दूर समुद्र में जाने का आदेश दिया। कालिय नाग
से मुक्ति के उपलक्ष्य में नागपंचमी का पर्व मनाया जाने लगा।
3) लोक-कथाओं
में भी नागपंचमी का महत्व अनेकों तरह से गाया गया है। एक लोककथा के अनुसार किसी गाँव में एक किसान अपने सात बेटों और सात बहुओं के साथ रहता था। उनमें छोटी बहू का कोई मायका नहीं
था, इससे वह तीज-त्योहारों पर काफी दुःखी हो जाती
थी। उस पर तरस खाकर सावन
के महीने में एक दिन शेषनाग उस किसान के घर आये और खुद को उसका दूर का रिश्तेदार
बताया और बहु को अपने घर विदा कराकर ले जाने की
प्रार्थना की। किसान ने छोटी बहू को शेषनाग के साथ भेज दिया।
छोटी बहू शेषनाग के घर में आनंद से रहने लगी। एक दिन भूल से एक जलता हुआ दीपक
शेषनाग के दो बच्चों पर गिर पड़ा, जिससे
बच्चों की पूँछ कट
गयी। शेषनाग कुछ न बोले और समय पर छोटी
बहू को उसकी ससुराल पहुँचा दिया। जब शेषनाग के बच्चे बड़े हुए और उनकी पूंछ कटने की
बात उनको मालूम हुई तो वे दोनों छोटी बहू को डँसने के लिए किसान के घर में चुपके
से आ पहूँचे।
उन्होंने देखा कि छोटी
बहू अपने नाग भाइयों के कल्याण की कामना कर रही थी। इससे वे दोनों नाग के बच्चे अति
प्रसन्न होकर अपनी बहन को उपहारस्वरूप बहुमूल्य मणिमाला देकर विदा हुए। उस दिन श्रावण मास के
शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि थी। लोकमान्यता है कि उसी दिन से नाग-पंचमी मनाने की
परंपरा चल पड़ी।
4) कैसे करें नागपूजन....
वैदिक काल से ही दिव्य सर्पों का पूजन होता आ रहा है। ‘नमोस्तु सर्पेभ्यः’ आदि वैदिक
मंत्र तथा नारायण बलि आदि वैदिक कर्मकाण्ड सर्पों की महिमा का ही बखान करते रहे
हैं। भगवान शंकर कहते हैं कि यह पंचमी देवताओं को भी दुर्लभ है। दिव्य
सर्पों की पूजा का पर्व ‘नागपंचमी’
श्रावण मास के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को सारे देश में श्रद्धापूर्वक
मनाया जाता है। इस दिन दिनभर का व्रत और पूजन
के बाद सायंकाल एक ही बार के भोजन करने का विधान है। क्षमतानुसार सोना, चाँदी,
लकड़ी या मिट्टी अथवा गोबर से नाग की मूर्ति बनाकर उसे
प्रातःकाल पंचामृत, करवीर,
कमल, सुगन्ध, धूप, दूध, लावा, खीर तथा विभिन्न पूजन सामग्रियों से नाग देवता का
पूजन करें तथा प्रणाम कर अभयदान की प्रार्थना करें।
द्वादश नाग...
अनन्त, वासुकी, शेष, पद्म, कंबल, कर्कोटक, अश्वतर,
धृतराष्ट्र, शंखपाल, कालिय, तक्षक, और पिंगल.. ये बारह नाग एक-एक महीने के स्वामी
हैं।
इनकी पूजा इनके नामों से आज करने से सर्प, विष, शत्रु
कालसर्प दोष आदि से तत्काल मुक्ति मिल जाती है।
इसके
अलावा ब्राह्मणों को भोजनादि कराकर दान-दक्षिणा दी जाती है। इस दिन नागों को दूध
से विशेष रूप से स्नान कराया जाता है। विश्वास है कि नाग-पूजा से धन की रक्षा,
अच्छी सेहत, स्वस्थ
संतान, दीर्घ जीवन आदि का आशीर्वाद मिलता
है।
5) कालसर्प जनित अनिष्ट की शांति का
उत्तम दिन...
इस तिथि को चंद्रमा की राशि कन्या होती है और राहु का स्वगृह कन्या राशि है। राहु के लिए प्रशस्त तिथि, नक्षत्र एव स्वगृही राशि होने के कारण नागपंचमी कालसर्प दोष की शांति के लिए उत्तम दिन माना जाता है। कालसर्प दोष की शान्ति के लिए नागपूजा एवं नारायण बलि करें। पंचमी तिथि को भगवान शंकर भी सुस्थानगत होते हैं। इसलिए इस दिन सर्पशांति के अंतर्गत राहु-केतु का जप, दान, हवन आदि उपयुक्त होता है। इसके अतिरिक्त अन्य दुर्योगों के लिए भगवान शिव का अभिषेक, महामृत्युंजय मंत्र का जप, यज्ञ, शिवसहस्रनाम का पाठ, गाय और बकरे के दान का भी विधान है।
इस तिथि को चंद्रमा की राशि कन्या होती है और राहु का स्वगृह कन्या राशि है। राहु के लिए प्रशस्त तिथि, नक्षत्र एव स्वगृही राशि होने के कारण नागपंचमी कालसर्प दोष की शांति के लिए उत्तम दिन माना जाता है। कालसर्प दोष की शान्ति के लिए नागपूजा एवं नारायण बलि करें। पंचमी तिथि को भगवान शंकर भी सुस्थानगत होते हैं। इसलिए इस दिन सर्पशांति के अंतर्गत राहु-केतु का जप, दान, हवन आदि उपयुक्त होता है। इसके अतिरिक्त अन्य दुर्योगों के लिए भगवान शिव का अभिषेक, महामृत्युंजय मंत्र का जप, यज्ञ, शिवसहस्रनाम का पाठ, गाय और बकरे के दान का भी विधान है।
नागगायत्री और द्वादशनाग का जप कर दशांश हवन से कालसर्प की
शान्ति हो जाती है।
नाग गायत्री मंत्र..
ऊँ नवकुलाय
विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो
सर्पः प्रचोदयात्
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